समुद्र सतह से ऊँचाई 442
मीटर स्थान विशेष का नाम के पीछे कोई न कोई इतिहास घटना या परमात्मा की विशेष कृपा या कोई राजा के नाम के पीछे या कोई देवी देवता के नाम पर चाहे जो भी हो कोई न कोई तथ्य छिपा रहता है, सिहावा क्षेत्र भारत भूमि के छत्तीसगढ़ धमतरी जिला के अंर्तगत अक्षांश 20.5
से 20.40' तथा 81.35
स 82.10
देशांश पर स्थित है।
इसी तरह से सिहावा नाम के पीछे तथ्य छिपा है अलग अलग विचार को ज्ञानियों एवं प्रबुद्ध जनों का सिहावा नाम के पीछे मत है -
1. मत है कि भगवान शंकर माता सती साथ कैलाश पर्वत से दक्षिण दण्डकारण्य में परमात्मा की कथा सुनने के लिये कुम्भल ऋषि (अगस्त) के आश्रम में आये थे। जिसे गोस्वामी तुलसीदास जी अपने रामचरित्र मानस के बालकाण्ड के दोहा क्र. 47
के 1
से 6
चौपाई में लिखते हैं -
चौपाई.
एक बार त्रेता युग माही, शंभु गये कुंभज ऋषि पाही।
संग सती जग जननी भवानी, पुजे ऋषि अखिलेश्वर जानी।।
राम कथा मुनि बर्ज बखानी, सुनि महेश परम सुख मानी।
रिषि पूछि हरि भगति सुहाई, कही शंभु अधिकारी पाई ।।
कहत सुनत रघुपति गुनगाथा, कछु दिन तहां रहे गिरिनाथा ।
मुनि सन बिदा मागि त्रिपुरारी, चले भवन संग दक्ष कुमारी ।।
कुम्भज ऋषि आश्रम मानस सम्मेलन के अध्यक्ष श्री रामाधीन जी भक्त एवं श्री लखन लाल जी शांडिल्य के मतानुसार शिव आवा भगवान शिवजी नदी में आये सती जी सिंह में सवार होकर आई शिव आवा सिंह आवा से इसलिए इस स्थान का नाम सिहावा पड़ा।
2. मत है कि भगवान राम 14
वर्ष वनवास और लंका विजय के पश्चात् पुष्पक विमान से सर्वप्रथम सिहावा क्षेत्र आये थे। जिसे गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरित्र मानस के 6वें सोपान लंका कांड के दोहा क्रमांक 119
ख के 1
से 3
चौपाई में लिखते हैं कि
चौ.
तुरत विमान तहां चलि आवा, दंडक वन जहां परम सुहावा।
कुंभजादि मुनि नायक नाना, गये रामु सब के अस्थाना ।।
सकल रिषिन्ह सन पाइ असीसा, चित्रकूट आए जगदीशा ।
सिहावा के वयोवृद्ध बुजुर्ग एवं सप्तऋषि आश्रम दर्शन के लेखक श्री नाथू राम जी पटेल के लेख अनुसार दण्डक वन जहाँ परम सुहावा
सुहावा शब्द ही आगे चलकर सिहावा में रूपातरित हुआ और सिहावा क्षेत्र में स्थित ऋषि आश्रम ही दण्डक वन है। वैसे श्री राम पूर्व राजा दण्ड जो इस क्षेत्र में राज्य करने आये और दुर्वासा ऋषि के आप से राज्य सहित भस्म हो गये थे जो बाद में जंगल हो गया उनके नाम से दण्डकारण्य पड़ा और दण्ड का दूसरा शाब्दिक अर्थ में दण्ड के समान मजबूत और टिकाऊ वृक्ष साल (सरई) का अरण्य होना है।
3). मत है कि दिलका रामायण (उड़िया) के अनुसार श्री | सीता माता सहस्त्र सिर वाले रावण का वध करने महाशक्ति काल रात्रि का भयंकर रूप धारण कर दुष्ट का सहार कर कुष्माण्ड ब्राम्हण को आर्शीवाद देने के पश्चात् यहीं आकर शांत हुई थी और अपने विकराल शरीर को धरती में समाहित कर शीतला रूप में धरती के ऊपर आई इसलिये भी सीता, शाँति, शीला शब्द से कालांतर में सिहावा पड़ा।
सिहावा का पौराणिक कथा(The legend of Sihawa)-
दण्डकारण्य वन में गूद मद नामक ब्राम्हण | महातेजस्वी तपस्वी दम्पति तपस्या कर रहे थे। गृदमद तपस्वी के पत्नि की प्रबल इच्छा थी कि उनके कोख से श्री लक्ष्मी जी स्वयं पुत्री रूप में जन्म है। ऋषि मुनियों के परामर्श से वेद मंत्रोचारण द्वारा एक कलश में कुश के दूध (रस) को इकट्ठा कर स्वास्ति वाचन एवं महालक्ष्मी
मंत्र के जाप एवं यज्ञ के पश्चात उस कुश के दूध को गृदमद की पत्नि पान करे तो श्री लक्ष्मी जी ही पुत्री रूप में जन्म लेंगी। जिस समय उस कलश में कुश के रस को इकट्ठा कर महालक्ष्मी मंत्र के जाप के पश्चात् यज्ञ चल रहा था, उसी समय लंका पति रावण के अनुचर (पटवारी) लोग टैक्स (कर) वसुलने ऋषियों के पास आये और रावण के अनुचर उस कलश को गुदमद ब्राम्हण पत्नि से झटक लेते हैं और उसी कलश से ऋषियों से टैक्स माँगते हैं।
ऋषियों के पास उनके देने लायक कुछ था तो नहीं फिर दुखी होकर अपने जगह को चीर कर उस कलश में अपने शरीर के रक्त को भर
देते हैं और ऋषियों ने अनुचरों से कहा कि इसमें रावण का मौत भरा है (ऐसा श्राप दिया)।
अनुचरों ने जाकर रावण को बताया रावण घबराकर उसे महाराज जनक के राज्य में कलश को गड़वा दिया। बारह वर्ष अकाल के पश्चात् हल की नोक से जनक (श्री रजध्वज) को कन्या रूप में उस कलश से | मिला, जो सीता जी के नाम से विख्यात होकर श्रीराम जी की पत्नी बनी।
ऋषियों द्वारा श्री (लक्ष्मी) प्राप्ति के कलश को रावण के हवाला कर दिया अर्थात श्री हवाला जो अभ्रंस में सिहावा नाम पड़ा क्योंकि दण्डकारण्य के कुछ भाग में सिहावा क्षेत्र भी आता है।
मत है कि श्री श्रृंगी ऋषि पर्वत में श्रृंगी ऋषि शांता माता के अलावा ठाकुर देव महाराज, सिहावा देवी आदि अनेक देवी दवता है। लोगों का कहना है कि सिहावा देवी के नाम से ही इस स्थान को सिहावा कहा जाता है।
इस क्षेत्र में एक अनसुलझी कहावत भी है कि -
"सात तावा सोलहपुर, जो जाने सिहावा के मुराइस कहावत का सही उत्तर कोई नहीं दे पाते कई बुजुर्गों का कहना है कि जो दशों इंद्रियों को (पाच ज्ञान, पांच कर्म) एवं मन बुद्धि चित एवं अहंकार से परे है जो आत्मा को परमात्मा से लीन रखता है वही
सिहावा के मूर को जान सकता है। देवी सहित सोलहपुर माना जाता है।
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